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दुष्यंत कुमार: विद्रोही कवि

दुष्यंत कुमार दुष्यंत कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश में जनपद बिजनौर के ग्राम राजपुर नवादा के ज़मींदार परिवार में 1 सितंबर 1933 को हुआ था। आपकी माता जी का नाम श्रीमती राम किशोरी देवी एवं पिता का नाम चैधरी भगवत सहाय था। कवि की प्रारंभिक शिक्षा गाँव की ही पाठशाला में मुख्याध्यापक पं. चिरंजीलाल शर्मा की छत्रछाया में संपन्न हुई। 1948 में कवि ने एस.एन.एस.एम. हाई स्कूल नहटौर जनपद बिजनौर से दसवीं कक्षा पास कर 1950 में चंदौसी, मुरादाबाद के एस.एम. काॅलेज से इंटरमिडिएट किया। 1950-54 तक कवि ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र रहते हुए बी.ए. और हिंदी साहित्य से एम.ए. किया। 1957-58 में कवि ने मुरादाबाद से बी.एड. किया। चन्दौसी में 30 नवंबर 1949 को राजेश्वरी कौशिक से कवि का विवाह संपन्न हुआ। कवि ने सर्व प्रथम जनपद बिजनौर के क़सबे किरतपुर में नौकरी की। कवि ने यहाँ एक विद्यालय में अध्यापकी की। यहाँ अध्यापकी करने के बाद ही मुरादाबाद से बी.एड. किया। तत्पश्चात आकाशवाणी दिल्ली के हिंदी वार्ता-विभाग में स्क्रिप्ट राइटर के रूप में कार्य किया। 1960 के अंतिम दिनों में कवि स्थानांतरण पाकर भोपाल पहुँचे। कवि ने मध्य प्र...

दुष्यंत जैसा कौन होगा

                           सत्यकुमार त्यागी जीवन में बहुत लोग मिलते हैं बातें होती हैं। सामाजिक होने की सूरत में दायरा अधिक बड़ा होता है। इस जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो मानस पटल पर अंकित हो जाती हैं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता।  मेरा दुष्यंत से काफ़ी मिलना जुलना था। वो थे ही ऐसे इंसान कि रास्ते चलते आदमी से दोस्ती कर लें। जब भी भोपाल से अपने गाँव राजपुर नवादा आते, तुरंत मेरे लिए बुलावा भेज देते। घंटों सफ़र की कहानी सुनाते रहते, मैं शांत बैठा हाँ हूँ करता रहता। उनके पास पुरानी कार थी।  भोपाल से राजपुर नवादा के सफ़र में जितने भी छोटे बड़े शहर के कार मैकेनिक थे, उस कार ने उनसे दुष्यंत की पक्की दोस्ती करा दी थी। वो उनसे कार ही ठीक नहीं कराते बल्कि उनके घर भी जाते और खाना या चाय पीकर अपना सफ़र आगे बढ़ाते।  एक बार जब दुष्यंत अपने पिता जी की मृत्यु के पश्चात् गंगा स्नान पर दीपदान करने आए शाम का समय था उनका नौकर मेरे घर आया और फ़रमान सुनाया बाबू जी ने आपको बुलाया है। मुझे ज़रूरी काम से कहीं जाना था परंतु दुष्य...

भारतीय उच्च शिक्षा में मूल्य एवं गुणवत्ता

डाॅ0 नरेन्द्र पाल सिंह  उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हमारे देश में पर्याप्त विकास एवं विस्तार हुआ है, उच्च शिक्षा की प्रगति का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि यह वृद्धि संख्यात्मक रूप से उल्लेखनीय है किन्तु गुणात्मक रूप से तो इसमें कमी आयी है। देश में प्रदान की जा रही शिक्षा को उसके भविष्य के रूप में देखा जाता है, क्योंकि हम जैसी शिक्षा अपनी वर्तमान पीढ़ी को देंगे वैसा ही उसका भविष्य भी होगा। वर्तमान उच्च शिक्षा व्यवस्था का मूल्यांकन सही रूप से न हो पाने के कारण, उच्च शिक्षा की कमजोरियों के लिये आर्थिक मजबूरियों को दोषी माना जाता है। उच्च शिक्षा के लिये संसाधनों की उतनी कमी नहीं है जितनी कि अच्छे प्रबन्धन की है। महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों पर सरकार अथवा इनका प्रबन्धन चाहे जितना खर्च कर ले तब तक सुधार सम्भव नहीं है जब तक कि इनके अच्छे प्रबन्धन पर जोर नहीं दिया जाता। उच्च शिक्षा का उद्देश्य, प्रशासन, उद्योग, वाणिज्यिक व्यवसाय व ज्ञान-विज्ञान में अधिकतम नेतृत्व करना तथा राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना उत्पन्न कर, जीवन को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध करना है, अर्थात् यदि किसी राष्...

ग़ज़ल परंपरा में नया प्रयोग है ‘तिरोहे’ 

सत्येंद्र गुप्ता सारांश अरबी से फ़ारसी साहित्य में आकर यह विधा शिल्प के स्तर पर तो अपरिवर्तित रही किंतु कथ्य की दृष्टि से उनसे आगे निकल गई। उनमें बात तो दैहिक या भौतिक प्रेम की ही की गई किंतु उसके अर्थ विस्तार द्वारा दैहिक प्रेम को आध्यात्मिक प्रेम में बदल दिया गया। अरबी का इश्के मजाज़ी फ़ारसी में इश्के हक़ीक़ी हो गया। फ़ारसी ग़ज़ल में प्रेमी को सादिक़ ;साधकद्ध और प्रेमिका को माबूद ;ब्रह्मद्ध का दर्जा मिल गया। ग़ज़ल को यह रूप देने में सूफ़ी साधकों की निर्णायक भूमिका रही। वली दकनी, सिराज दाउद आदि इसी प्रथा के शायर थे जिन्होंने एक तरह से अमीर खुसरो की परंपरा को आगे बढ़ाया। जब ग़ज़ल ने हिंदी में पदार्पण किया तो जैसे चमत्कार हो उठा। हिंदी में ग़ज़ल को आशिक़ और माशूक़ के अलावा भी काफ़ी विषय मिल गए। हिंदी के अनेक कवियों ने शिल्प से छेड़छाड़ किए बिना ग़ज़ल को अपनाया। ऐसे कवियों में अमीर खुसरो, कबीर, गोविंद चाननपुरी, निराला, शमशेर, बलबीर सिंह रंग, भवानी शंकर, जानकी वल्लभ शास्त्री, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, त्रिलोचन, दुश्यंत कुमार, गोपालदास नीरज, डाॅ. श्यामानंद सरस्वती, कुंवर बेचैन आदि प्रमुख हैं। ऐसे ही एक और ग़ज़लकार है...

कितना जरूरी है स्मार्ट कक्षा – कक्ष

डॉ. इस्‍पाक अली डी.लिट वैज्ञानिक अविष्कारों ने मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष एवं क्रिया को प्रभावित किया । इससे हमारी शिक्षा भी अछूती नहीं रह सकीशिक्षण एक सतत प्रक्रिया है। एक शिक्षक अपनी शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए अनेक प्रकार की तकनीकियों का प्रयोग करता है। परंतु एक शिक्षक में सम्प्रेषण कौशल का होना अति आवश्यक है, जिससे वह अपनी पाठ्य वस्तु को छात्रों को प्रभावपूर्ण ढंग से समझा सके। यदि वह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाना चाहता है तो उसको नवीन तकनीकियों को कक्षा में प्रयोग करता होता है और साथ ही साथ शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए आधुनिक शिक्षण अधिगम तक तकनीकियों का उपयोग भी करता होता । शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाने हेतु कुछ महत्वपूर्ण शिक्षण अधिगम तकनीकियों को अपनाना पड़ता हैवर्तमान में इसमें स्मार्ट कक्षा कक्ष (SMART CLASSES) बहुत ही उपयोगी शिक्षण अधिगम तकनीकी के रूप में उभर कर आया हैं। आज के प्रतियोगितावादी युग में शिक्षा में गुणवत्ता एक मूल आवश्यकता होती जा रही है। आज तकनीकी मानवीय जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित कर रहा हैभारत में स्मार्ट कक्षा कक्ष एक आ...