"अरे तुम तैयार क्यों नहीं हो रही हो| "
"क्या पहनूं जी, ढंग की साड़ियां ही नहीं है |"
"पूरी अलमारी तो साड़ियो से भरी पड़ी है और तुम कह रही हो कि साड़ियां ही नहीं है|"
"सब पुरानी साड़िया हैं | नयी दिलाई हैं क्या आपने ?"
"अरे अभी तो खरीदी थीं तुमने, अपने भाई की शादी में|''
"अभी नहीं पति महोदय, पूरे दो साल हो गये | कितनी बार पहना है उन्हें,पता है ?बबलू की शादी में, भाई की शादी में, मिन्टी की सगाई में और ...."
"हाँ तो क्या हुआ, वही पहन लो| अरे, बस-बस कुछ भी पहन लो, चलो जल्दी देर हो रही है| अगले महीने तनख्वाह मिलते ही और दिला दूँगा | अहा ! देखो, हँसते हुए कितनी प्यारी लगती हो | पक्का, १००० सिर्फ साड़ी के लिये दूँगा "
"१००० रूपये, बस ! इतने में क्या होगा जी |" कनिका तुनक कर बोली |
"तो फिर कितना ?"
"आजकल ५०० रुपये तो ब्लाउज पर ही खर्च हो जाते है | महंगाई बढ़ गई है | कम से कम ५००० चाहिए ..."
''इतना? जितनी चादर हो उतना ही पाँव पसारना चाहिए, कनिका |"
"यह कहावत पुरानी हो गयी जी| अब पाँव के हिसाब से चादर बढाने का जुगाड़ करिए| तब जाके बीबी-बच्चों को खुश रख पाएंगे और खुद भी सुखी रहेंगे|" फिलास्फर बन कनिका ने जबाब ठोंक दिया
कनिका आगे बोली "शुक्र मनाइए कि आपको मैं मिली, वर्ना बीबियाँ तो हजारों रुपये व्यूटीपार्लर जाकर खर्च कर आती हैं | ब्रांडेड सेंट ,पाउडर, लिपस्टिक ऊपर से |"
"अच्छा बाबा, देखता हूँ, अब चलो भी |"
शादी में पहुँचते ही नीरज की नजर अपने सहकर्मी की बीबी पर गयी | कोई ख़ास सुन्दर नहीं थी पर महंगी साड़ी और गहनों से लदी हुई थी | अपनी उदास बीबी की ओर देख उसने मन ही मन कुछ सोच निर्णय कर लिया ....| ..सविता मिश्रा
मेरी स्वरचित/मौलिक रचनाए हैं।
सविता मिश्रा o9411418621
w/o देवेन्द्र नाथ मिश्रा (पुलिस निरीक्षक )
फ़्लैट नंबर -३०२ ,हिल हॉउस
खंदारी अपार्टमेंट , खंदारी
आगरा २८२००२पिता का नाम ..श्री शेषमणि तिवारी (रिटायर्ड डिप्टी एसपी )
माता का नाम ....स्वर्गीय श्रीमती हीरा देवी (गृहणी )
जन्म तिथि ...१/६/७३
शिक्षा ...बैचलर आफ आर्ट ...(हिंदी ,रजिनिती शास्त्र, इतिहास)
अभिरुचि ....शब्दों का जाल बुनना, नयी चीजे सीखना, सपने देखना
'मेरी अनुभूति' परिलेख प्रकाशन से प्रकाशित पहला संयुक्त काव्यसंग्रह
'मुट्ठी भर अक्षर' पहला प्रकाशित साँझा लघुकथा संग्रह |
2012.savita.mishra@gmail.com
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