बालस्वरूप राही
ज़्यादातर लोग होते हैं महज़ होने के लिए। बहुत कम लोग होते हैं जिनका होना महसूस किया जाता है। रामावतार त्यागी उन्हीं चंद लोगों में से हैं जो जहां मौजूद होते हैं वहां पूरी तरह मौजूद होते हैं। उपस्थिति की ख़ास अदा मेरे विचार से त्यागी जी की एक प्रमुख पहचान है। यह हो ही नहीं सकता कि वे किसी सभा, समारोह में जाएं और वहां कोई संस्मरण न छोड़ आएं। हां, वह संस्मरण कैसा भी हो सकता है। वह उन्हें प्रशंसा का पात्र भी बनवा सकता है और ऐतराज़ का भी। वे अपने दोस्तों और आलोचकों पर समान रूप से मेहरबान रहते हैं। वे दोनों ही के लिए समान रूप से चर्चा की सामग्री मुहैया करते रहते हैं। उनके संपर्क में आने वाले किसी व्यक्ति को शायद ही कभी यह शिक़ायत भी रही हो कि उनके बारे में कहने के लिए उसके पास कुछ नहीं है। त्यागी जी में बहुत कुछ ऐसा है जो परिष्कृत होने से, सांचे में ढल कर सुगढ़ बनने से इंकार करता रहा है। हालात ने उन्हें हमवार करने की बड़ी कोशिशें कीं लेकिन उनका बांका तेवर आज तक बरक़रार है। उनकी उपस्थिति उनकी कविता में भी बड़ी तेज़ी के साथ अनुभव की जा सकती है। यों, यह बात आज के फैशन के ख़िलाफ़ है।
लोग कितनी जल्दी मंझ जाते हैं, घिस जाते हैं, गंभीर और परिपक्व हो जाते हैं। आदर्शों के मुखौटे पहन लेते हैं, उपदेश का धंधा अपना लेते हैं। लोग कितनी जल्दी बुढ़ाने लगते हैं, खासतौर पर हमारे देश में। यह बुजर्गीं, जिसे पढ़े-लिखे लोग परिपक्वता या बौद्धिकता भी कहते हैं, त्यागी जी पर कभी हावी नहीं हो पाई। इसलिए कोई पीढ़ी उनके लिए उनके बाद की पीढ़ी नहीं है, कोई व्यक्ति उनके लिए जूनियर नहीं है। कोई भी नया काम वह आज भी बड़े उत्साह और विश्वास के साथ आरंभ कर सकते हैं, बिना इस सोच में पड़े कि अब इसके लिए बहुत देर हो चुकी है।
कविता के क्षेत्र में जब मैंने तुतलाना शुरू किया था तब वह पत्र-पत्रिकाओं पर छाए हुए थे, कवि-सम्मेलनों में ‘सेन्सेशन’ बने हुए थे। आज जब उनकी पीढ़ी के बहुत-से कवि बुजुर्गी का लबादा ओढ़ चुके हैं, ‘आइवरी टावर’ पर चढ़ कर बैठ चुके हैं और प्रतिष्ठित, पुरस्कृत साहित्यकारों की सूचियों में अपना नाम ऐनक लगा-लगा कर ढूंढने की कोशिश में जुटे रहते हैं, तब भी त्यागी जी पहले की तरह ही एक ‘सेन्सेशन’ बने हुए हैं। ज़िंदगी आज भी जैसे उन से यह कह रही हो कि इंतजार करो, मैं तुम में अभी शुरू होने ही वाली हूं। क्या यही वजह नहीं है कि उनकी कविता आज भी पहले की ही तरह नौजवान है और कल लिखना शुरू करने वाला लड़का भी अपनी कविता के पास ही उनकी कविता की उपस्थिति अनुभव करता है। कुछ वैसे ही, जैसे मैंने अपने विद्यार्थी-जीवन में अनुभव की थी।
त्यागी जी मुझसे बड़े हैं और मेरा संस्कार मुझे अनुमति नहीं देता कि मैं अपने से बड़े को जी का प्रयोग किए बिना संबोधित करूं। किंतु त्यागी जी ने जो आत्मीयता मुझे दी उसने मुझे निरस्त्र कर दिया। यहां भी मैं जी का प्रयोग केवल तकल्लुफ़ में कर रहा हूं और आश्वस्त हूं कि त्यागी जी की यहां चल नहीं सकती। कहीं और मैंने उनके नाम के साथ जी का प्रयोग किया होता, तो वह अबे-तबे पर उतर आते।
काग़ज़ बहुत महंगा हो गया है और वक़्त बहुत क़ीमती। इसलिए कम-से-कम शब्दों में अपनी बात कहने की लाचारी सामने हो और मुझ से यह प्रश्न कर दिया जाए कि उनकी कविता में आपको सबसे ख़ास क्या लगता है? तो मेरा उत्तर यही होगा कि उनकी कविता में आम है ही क्या? अच्छे-से-अच्छे कवि की तुलना किसी पूर्ववर्ती अथवा सहवर्ती कवि से की जा सकती है और समानता के सूत्र खोजे जा सकते हैं। मगर जरा कोशिश करके देखिए और किसी की कविता में वह बात ढूंढ निकालिए जो त्यागी की कविताओं में है। असफलता निश्चित है। त्यागी जी किसी भी पूर्ववर्ती या सहवर्ती कवि-जैसे नहीं हैं। वे समकालीन हिंदी कविता के सर्वाधिक अतुलनीय कवि हैं। यही कारण है कि इस दौर में भी जबकि कविता भुलाई जा रही है, उनकी काव्य-पंक्तियां हर पीढ़ी के व्यक्ति को सबसे ज़्यादा याद होंगी।
उनकी वर्षगांठ पर केवल यह कह कर मुझे संतोष नहीं हो सकता कि वह चिरजीवी हों, मेरी शुभकामना तो यह भी है कि उनकी तरुणाई चिरजीवी हो।
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