रामावतार त्यागी
अपने उन अनेेक काव्य-पे्रमियों के आग्रह पर जिन्होंने बार-बार मेरी रचनाओं को संकलित रूप में पढ़ने की इच्छा व्यक्त की है, अपनी कुछ कविताएं आपको भेंट कर रहा हूं-यों मेरी आपकी जान-पहचान तो पुरानी है। जानता हूूं अपने बारे में कुछ कहना शिष्टाचार की बात नहीं है, किंतु पूछे जाने पर मौन रहना भी कम असभ्यता की बात नहीं होती। मुझे मालूम है कि आप मेरा वक्तव्य सुनने की बजाए अपने प्रश्नों के उत्तर सुनना अधिक पसंद करेंगे। हां, काव्य-प्रेेमियों के भी कुछ प्रश्न होते हैं। मैंने उन्हें अपने ढंग से समझने का यत्न किया है, क्योंकि एक कवि को काव्य-पारखी का हर प्रश्न समझना भी चाहिए। इस सिलसिले में कुछ नया न लिखकर एक प्रश्नकर्ता के प्रश्न और उसको दिए गए अपने उत्तरों को उद्धृत कर देने से मेरा कार्य अधिक सरल हो जाता है। तो लीजिए मैं हाज़िर हूं।
इंटरव्यू:
नोट - (केवल बौैद्धिक वयस्कों और जोे कविताएं न पढ़ना चाहें उनके लिएद्ध
पिछले कुुछ दिनों से कविता-क्षेत्र में इतना अधिक कोलाहल क्यों है?
कवि अधिक हैं, पुराने भी नए भी, वादी भी विवादी भी। अच्छे कितनेे हैं, मालूम नहीं लेकिन महाकवि अधिक हैं। अधिक कहना ख़तरे से ख़ाली नहीं है, क्योंकि अभी हिंदी मेें बोलनेे की स्वतंत्रता भी पूूरी नहीं मिली है, सच बोलनेे की कौन कहे। किंतु मैं कोलाहल से अधिक दुःखी नहीं हूं क्योंकि मुझेे मालूम है कि हिंदी कविता का इतिहास शीघ्र ही नए सिरे से लिखा जाएगा और उसमें आधुनिक-कविता का परिच्छेद लिखने के लिए उन आलोचकों को हरगिज़़ निमंत्रित नहीं किया जाएगा जो निराला, बच्चन और दिनकर को आधुनिक हिंदी कविता के सबसे बड़ेे कवि कहते-कहते किसी आलोचक-सम्राट के पूर्वाग्रह को पढ़कर बिदक जाते हैं या घबरा कर अपने आपको ही युग-कवि घोषित कर बैठते हैं।
आधुनिक हिंदी कविता और आलोचकों की स्थिति?
आधुनिक हिंदी कविता बड़ी विवादास्पद स्थितियों से गुज़र रही है। ठीक उन्हीं परिस्थितियों से, जिनमें होकर सन् 47 से पूर्व हमारे देश को गुज़रना पड़ा है। तब हमारे आचरण को सत्-असत् इंगलैंड के लोग घोषित करते थे। आज हिंदी कविता के गुण-दोष के संबंध में निर्णय देने का अधिकार उनके पास है जिन्हें बीसवीं शताब्दी केे योरोपीय कवियोें और आलोचकों के नामों की सूची कंठस्थ हो। अलग-अलग देशों की कविता अलग-अलग शैलियों में लिखी गई है और उसके निर्माण में वहां की संस्कृति, परंपराओं, सीमाओं, तथा जन-रुचि का योग रहा है। हमारी भाषा में कुछ प्रबुद्ध कवियों की पैदावार इधर बढ़ी है। और उनका आग्रह है कि समस्त देशों की समस्त शैलियों में कविता लिखकर ही हिंदी की नाक ऊंची हो सकेगी। इसलिए भारतीय नारी की तरह हिंदी कविता के लिए भी सभी देशों की पोशाकें तैयार की जा रही हैं। आलोचक इसे नई अभिरुचि मानता है। मेरे विचार से इसमें चिढ़ने की गुंजाइश अधिक नहीं है क्योंकि पोशाक की काट-छांट पर शरीर और उसमें निवास करने वाली आत्मा की अच्छाई-बुराई का निर्णय अधिक दिन निर्भर नहीं करेगा। साड़ी भी पहनी जा सकती है, गाउन भी, स्कर्ट भी। हां यह बात अलग है कि आप प्रबुद्ध होते हुए भी माता जी या बहन जी को साड़ी पहनेे देखना अधिक पसंद करते हों।
कवि की लोक-प्रियता श्रेष्ठ कविता की पहचान है?
वह अच्छी कविता की पहली शर्त है पर उससे भी बड़ी एक शर्त और है। उस लोकप्रियता को किस माध्यम से अर्जित किया गया है। वह शब्दों के जादू की देन है या अर्थ-बोध की। कवि के सुरीलेपन से मिली है या कृतित्व के तप से। निर्णय कान ने दिया है या हृदय ने।
कविता को व्यापक और समृद्ध बनाने के लिए मुक्त-वृत्त में लिखना आवश्यक लगता है?
शायद आपने भूगोल पढ़कर ऐसी धारणा बनाई है। क्योंकि भूगोल के अनुसार समुद्र-तट के अधिक कटे-फटे होने पर ही देश की समृद्धि निर्भर करती है। मेरे विचार से छंद एक व्यवस्था का नाम है। और हिंदी कविता की तो छंद संस्कृति है। इतना संशोधन इसमें जोड़ा जा सकता है कि अनुप्रास-हीन भी छंद हो सकता है। धर्म को रहना है तो पूजा होगी ही। मुझे पता नहीं पूजा के समय उपन्यासों को गाने की प्रथा कभी शुरू होेगी या नहीं पर कविता हमेशा गाई जाएगी जो अपनी संस्कृति में होगी, विदेशी संस्कृति में नहीं।
कविता की भाषा के संबंध में आपके विचार?
भाषा के बारे में मुझे बहुत कुछ कहना है लेकिन समय की कोताई के कारण एक संस्मरण सुना कर ही काम चलाना सरल है। एक आदर्श कवि ने मेरी भाषा पर आपत्ति प्रकट करते हुए डांटा-‘‘आत्मा’ में पांच मात्राएं क्यों मानते हो, श्मशान को शमशान क्यों लिखतेे हों’’। मैं जानबूझकर कर ऐसा गुनाह करता हूं क्योंकि हिंदी छंद-शास्त्र के कुछ नियम ग़लत हैं। ‘आत्मा’ में चार मात्राएं तब हो सकती हैं जब ‘त’ की ध्वनि को स्वीकार न किया जाय। ‘आमा’ और ‘आत्मा’ में कोई भेद है या नहीं। कविता में तीन स्थानों से शब्द आते हैंऋ शब्द-कोश से, बोल-चाल से, वे शब्द जो कोष में मुद्रित होने के अभिलाषी हैं और शब्दाभाव की स्थिति में किसी भाव-विशेष को व्यक्त करने के लिए कवि की नए शब्द सृजन की क्षमता से। कविता का काम जीवन दर्शन को सुुगम बनाना हैऋ इसलिए उन शब्दों के प्रयोग की स्वतंत्रता मैंने ली है जिन्हें अभी शब्दकोष में आना है। दूसरे, शब्द तो मात्र संदेशवाहक हैं, संदेश नहीं हैं। एक बात और भी हैऋ आदमी की तरह भाव की भी एक रुचि होती है, इसलिए उसे अपने अनुकूल शब्द स्वयं चुननेे दोे, नहीं तो शब्द और भाव का यत्नज संबंध अनमेेल-विवाह की तरह होगा।
महान कवि के लिए महान व्यक्ति होना ज़रूरी है या नहीं?
‘महान’ बहुत ही आतंकित करने वाला शब्द है। मैं समझता हूं महान से आपका अर्थ ‘अच्छे’ से है। मैं निःसंकोच रूप से यह मानता हूं कि भ्रष्ट व्यक्ति अच्छी कविता नहीं लिख सकता। किंतु कुत्सित समाज शास्त्र और सदाचार संहिता द्वारा निर्धारित ‘भ्रष्ट’ की परिभाषा भी कुत्सित ही है। कोई हृदय-हीन व्यक्ति सरस कविता को जन्म नहीं दे सकता क्योंकि कविता बौद्धिक-व्यायाम के निष्कर्ष का फल नहीं है बल्कि वह हृदय की कठिन भाषा का सरल अनुवाद है। हां, सदाचार शास्त्र ने महान कवियों को दोषी ठहराया है। किंतु इसका उत्तर इतिहास के पास है। हर युग का शासन सूत्र द्वितीय श्रेणी की प्रतिभा के हाथ में रहता है क्योंकि थोड़ी-बहुत युगीन ख्याति के अतिरिक्त उसमें पद और परिस्थिति से समझौता करने की क्षमता भी होती है। प्रथम श्रेणी की प्र्रतिभा एक भी कुत्सित परंपरा या नाटकीय व्यवहार से समझौता नहीं करती। फलस्वरूप सामाजिक प्रतिष्ठा से प्रायः वंचित रह जाती है। साथ ही द्वितीय श्रेणी की प्रतिभा अपनी नैतिक दुर्बलता को छिपाने के लिए उसके विरुद्ध आंदोलन करती रहती है ताकि सत्ता उसी के हाथोें में सुरक्षित रहे।
गीत के कुछ सिद्धांत भी हैं क्या?
जी हां है, और वे भी बड़े बारीक हैं। हरेक गीत एक महाकाव्य होता है। महाकाव्य के भी कुछ सिद्धांत हैं, गीत के भी। फ़िल्मी गीत लिखने के बाद नहीं, गाने के बाद गीत बनता है। और गानेे के बाद फिर गीत नहीं रहता। किंतु कविता का गीत तीनों स्थितियों में गीत ही रहता है क्योंकि उसका संगीत शब्द-गत न होकर भाव-गत होता है। गीतकारों को एक बात और भी समझ लेनी चाहिए कि भाव का उद्भव मात्र ही गीत को जन्म देने में पर्याप्त नहीं है वरन् जो भाव मन में जीते-जीते जीवन का दुःख-सुख बन जाता है वही गीत को जन्म देने में समर्थ होता है। हमारे अनेक सुख-दुःख सामान्य होते हुए भी उन्हें भोगने की परिस्थितियां, पद्धतियां और मात्राएं सामान्य नहीं होतीं। अनुभूति की तीव्रता, उसका समय विस्तार (कितने अधिक समय वह टिकती है) और उसकी अभिव्यक्ति के माध्यम के निर्वाचन पर ही गीत की श्रेष्ठता निर्भर करती है। सब भावों के लिए हमारे यहां पृथक-पृथक छंद निर्धारित हैं। मैं आवेगपूर्ण भावाभिव्यक्ति के लिए क्षिप्रगामी और सुकुमार लजीले भावों के लिए मंथर गति वाले छंदों को चुनता हूं। इधर गीतकारों पर पुनरुक्ति दोष अधिक लगाया जाता है। मैं इस दोष से सहमत हूं, किंतु भाव की पुनरुक्ति ही दोष मानी जानी चाहिए न कि शब्द की। इधर पुनरावृत्ति के जितने दोष गिनाए जाते हैं उनमें शब्दों के सिपाही बार-बार खड़े किए जाते हैं। चंद्रमा, सूर्य, सुमन, शूल प्रेम, और घृणा के बार-बार प्रयोग से कविता में यह दोष पैदा नहीं होता, यदि नए-नए भावों को प्रकट करने के लिए इनका प्रयोग किया जाए। और अगर शब्दों का नयापन ही अच्छी कविता की कसौटी है तो अमर कोष को सूर सागर से श्रेष्ठतर कृति माना जाना चाहिए। और हां, नए-नए शब्दों का जितना प्रयोग गीतकारों ने किया है उतना नई कविता के अलमबरदारों ने नहीं किया है। अंग्रेज़ी और बंगला के दर्ज़ी-कट शब्दों कोे गूंथने में वे हम से बहुत आगेे हैं। गीतों में सूत्रात्मकता भी रहनी चाहिए। बीच में भाव-परिवर्तन से रस-विरोध की स्थिति का भय बना रहता है। सरलतम शब्दों में महानतम भावों को समो देनेे वाला कवि सबसेे बड़ा गीतकार होगा।
आधुनिक युग में पुरानी और नई पीढ़ी के कुछ श्रेष्ठतम कवियों के नाम बताइए?
मालूम होता है आप मुझसे रुष्ट हैं, नहीं तो ऐसा प्रश्न नहीं करतेे जो मुझे जोखम में डाल सकता है। उत्तर भी मैं उलझा हुआ ही दूंगा। और देखिए जब कोई क्रोध प्रकट करे तो मेरे इस सत्य-कथन के लिए क्षमा उससे आपको मांगनी होगी।
सर्वश्री प्रसाद, निराला, बच्चन और दिनकर पिछली सीढ़ी के सबसे बड़े कवि हैं। श्री नरेन्द्र शर्मा और शंभुनाथ सिंह के नाम उनके बाद लिए जा सकते हैं बाकी अधूरे कवि तो सभी हैैं।
नई पीढ़ी के बारे में अभी निर्णय नहीं दिया जा सकता। फिर भी नीरज आत्म-निरीक्षण के बाद, रमानाथ नया जन्म पाने के बाद, राही लंबी उम्र पाने के बाद और त्यागी और भी पीड़ा सहने के बाद इस पीढ़ी के सबसे बड़े कवि माने जा सकेंगे। और हां, मुकुट बिहारी सरोज ने भी इधर नई संभावनाओं को जन्म दिया है। कुछ और लोग भी आ रहे हैं जिनका स्वागत हमें करना चाहिए। न जाने कौन कालवैतरणी को लांघ जाने की शक्ति पांवों में लिए है। प्रयोगवादियों में सर्व श्री भारती, दुष्यंत और श्रीकांत वर्मा को छोड़कर सबने चित्रकारी की है। उसे दृष्टि काव्य माना जा सकता है काव्य नहीं।
हां, ऊपर दिए गए सब नामों के अतिरिक्त एक नाम ऐसा और है जिसे अलग से लेने की ज़रूरत है। वह नाम है श्री बलवीर सिंह ‘रंग’ का। रंग जी के साथ जितना अन्याय हुआ है उतना कम लोगों के साथ हुआ है। हालांकि वह सबसे अधिक मौलिक कवि हैं। मैं उन्हें युग-कवि की संज्ञा देने में किसी भी संकोच का अनुभव नहीं करता।
श्री वीरेन्द्र मिश्र के बारे में आपका क्या विचार है?
जी श्री नरेश मेहता के बारे में है। और कुछ नहीं कहूंगा। वीरेन्द्र मेरे अच्छे मित्रों में से एक हैं इसलिए ज़्यादा न कहलाइए।
लीजिए यह बात समाप्त हुई।
अंत में मैं कुछ लोगों के प्रति आभार प्रदर्शन करना लाज़मी समझता हूं क्योंकि इन रचनाओं के सृजन में उनका भी योग है। धन्यवाद करता हूूं गोेपाल सिंह का जिसने मुझे भोजन देकर ये कविताएं लिखने के लिए जीवित रखा, प्रणाम करता हूं श्री सुमन जी और विद्रोही जी को जिनकी सद्भावनाओं ने मुझे जीनेे की प्रेरणा प्रदान की, स्नेेहांजलि अर्पित करता हूं श्री बांके बिहारी भटनागर को जो कविता विरोधियों के विरोध के बावजूद मेरी रचनाएं प्रकाशित करने की बदनामी सहते रहे, नमस्कार करता हूूं राही को जिसकी प्रतिद्वंद्विता मुझे रात-दिन सोने नहीं देती क्षमा याचना करता हूं श्री सुरेन्द्र कुमार मल्होत्रा से, और आभार प्रकट करता हूूं अपनेे प्रकाशक और पाठकों का। बस और कहूं भी क्या।
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