कोरोना काल में जहां समूचे विश्व समुदाय के लोग अपने-अपने घरों में सिमट कर बैठे थे वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो घर बैठकर भी अपने कार्य को पूरी तन्मयता पूर्वक कर रहे थे।
मार्च महीने से भारत में लॉकडाउन हो गया उस दौरान सरकार के प्रतिदिन नए दिशानिर्देश आ रहे थे, विश्व स्वास्थ्य संगठन से रोज नई डरावनी जानकारियां आमजन के बीच पहुँच रही थीं। कोविड-19 नाम के इस वायरस का कब खात्मा होगा इसके बारे में कोई भी स्वास्थ्य संगठन या किसी भी देश की सरकार कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी।
इस वैश्विक महामारी के चलते प्रवासियों का पलायन अनवरत जारी था, बहुतेरों लोगों की दो वक्त की रोटियां तक इस वैश्विक महामारी ने छीन ली थी। पूरे मानव समाज को इस वैश्विक महामारी की वजह से हर तरह का नुकसान उठाना पड़ रहा था। समूचे विश्व में बस कयास की लगाए जा सकते थे कि आगे भविष्य में क्या होगा? सबको अपना भविष्य धुँधला ही नज़र आ रहा था एवं सब लोग हैरान तथा परेशान थे।
आने वाले वर्षों में लोग इस वैश्विक महामारी को भूल नहीं पाएंगे एवं इसके बारे में आने वाली पीढियां जानना चाहेंगी लेकिन उन्हें सटीक जानकारी तभी मिल सकेगी जब लॉकडाउन एवं कोरोना से जुड़े तथ्यों को शब्दबद्ध किया जाएगा यह सोचकर समाजसेवी दिव्येन्दु राय ने लॉकडाउन : एक अनकही दास्ताँ को लिखने का निश्चय किया।
लॉकडाउन : एक अनकही दास्ताँ प्रकाशन के बाद पाठकों में लोकप्रियता के नए आयाम छू रही है, सोशल मीडिया की तस्वीरों के अनुसार उस युवा वर्ग को इस किताब को पढ़ते हुए देखा जा रहा जिन्हें किताब पढ़ने के बजाय फेसबुक, ट्विटर चलाने से फुरसत नहीं मिलती थी। पिज़्ज़ा, बर्गर के अलावा जिनकों कभी किताबों को पढ़ने में स्वाद नहीं आता था वह युवा लॉकडाउन : एक अनकही दास्ताँ के साथ फोटो शेयर करते हुए खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। युवाओं की तस्वीरें इस किताब को पढ़ते हुए लगभग हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एवं धरातल पर देखी जा सकती हैं।
"सामाजिक मुद्दों पर महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय पुस्तकें अधिकांशत: अंग्रेजी में प्रकाशित होती है जबकि लॉकडाउन : एक अनकही दास्ताँ का हिन्दी में प्रकाशित होना हिन्दी भाषा के पाठकों के लिए बड़ी बात है।"
मऊ के काछीकलॉ के रहने वाले हैं दिव्येन्दु राय
लॉकडाउन : एक अनकही दास्ताँ के लेखक दिव्येन्दु राय मऊ जनपद के कोपागंज विकासखण्ड के काछीकलॉ गॉव के मूलतः रहने वाले हैं। वह समाज के सभी वर्गों में लोकप्रिय हैं एवं युवाओं में उनकी लोकप्रियता आसमान छू रही है।
इंजीनियरिंग की पृष्ठभूमि से ताल्लुक़ रखने वाले दिव्येन्दु की लेखनी में हिन्दी भाषा पर उनकी पकड़ बेहद ही प्रभावशाली है। उनकी लेखनी सदैव समाजिक मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाती है तथा सामाजिक कुरीतियों का विरोध करती है।
शिक्षक माता-पिता के पुत्र होने की वजह भी दिव्येन्दु के हिन्दी के प्रति अपनेपन की एक महत्वपूर्ण वजह है।
लॉकडाउन : एक अनकही दास्ताँ की कहानी
लॉकडाउन : एक अनकही दास्ताँ में उस हर एक पहलू की चर्चा की गई है जिसके बारे में लोग सोचना भी नहीं चाहते। इसमें राज्य सरकारों से केन्द्र सरकार के समन्वय की चर्चा भी की गई है तो वहीं प्रवासियों के आँशुओं की भी क़द्र की गई है।
कोरोना को लेकर सरकार के फैसलों से लेकर विधायिका के सदस्यों की भूमिका तक सबकी चर्चा लॉकडाउन : एक अनकही दास्ताँ में की गई है। आने वाले वर्षों में यह पुस्तक कोरोना से जुड़ी बातों एवं अनुभवों को बताने में अपनी उपयोगिता साबित करेगी एवं अपनी एक अलग पहचान बनाएगी।
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