ज्योत्सना भारती
यह.... धरती !
रहे....सजती !
सजे पर्यावरण अपना ।
यही विनती !
कलम करती !
बचे पर्यावरण अपना ।।
( 1 )
ये जीवनदायनी वायु,
ये जीवनदायी पानी है ।
ये माटी उर्वरा माँ है,
ये ऊर्जा भी बचानी है ।
वो वापिस लो !
गया है जो !
हरा पर्यावरण अपना ।।
यही विनती !
कलम करती !
बचे पर्यावरण अपना ।।
( 2 )
कहीं पे रात हैं दहकी,
कहीं पे दिन हैं बर्फानी ।
कहीं भूकंप,कहीं सूखे,
कहीं वर्षा की मनमानी ।
न कर दूषित !
करो पोषित !
बचा पर्यावरण अपना ।।
यही विनती !
कलम करती !
बचे पर्यावरण अपना ।।
( 3 )
है कटना वृक्ष जरूर एक,
तो पौधें दस वहाँ लगनी ।
नहीं कंक्रीट की फसलें,
किसी भी खेतअब उगनी ।
न शोषित हो !
औ शोभित हो !
सदा पर्यावरण अपना ।।
यही विनती !
कलम करती !
बचे पर्यावरण अपना ।।
( 4 )
न भाषण हों,न वादे हों,
न बातें हों, कहानी हों ।
यही शुभ कर्म,मानें धर्म,
यदि स्वांसें बचानी हों ।
ये घोषित हो !
प्रदूषित हो !
नहीं पर्यावरण अपना ।।
यही विनती !
कलम करती !
बचे पर्यावरण अपना ।।
ए/3-आदर्शनगर
नजीबाबाद-246763
(बिजनौर) उत्तर प्रदेश
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