इन्द्रदेव भारती
आधी रख,या सारी रख ।
लेकिन रिश्तेदारी रख ।।
छोड़ के तोड़ नहीं प्यारे,
मोड़ के अपनी यारी रख ।
शब्दों में हो शहद घुला,
नहीं ज़बाँ पर आरी रख ।
भले तेरी दस्तार गयी,
तू सबकी सरदारी रख ।
"देव'' नहीं दुनिया तेरी,
पर तू दुनियादारी रख ।
Comments
Post a Comment