बापू का सपना था
सात वर्ष की वय से-
सात वर्ष तक,
हर बालक का
शिक्षा पर हो अधिकार,
केवल अक्षर ज्ञान नहीं,
व्यवसायिक शिक्षा थी जिसका आधार।
तन-मन-संकल्प शक्ति से
श्रम की साधना,
स्वावलम्बन की आराधना,
स्वाभिमान से दीपित भाल,
चौहदह वर्ष में अपना ले वह रोजगार।
न रहे कोई हाथ बेगार-बेकार
हर हाथ को मिले काम
स्वाभिमान संग देश उन्नति में भाग,
मिले संस्कार , सम्मान संग
अपनों का साथ।
रहे गाँव आबाद
स्व श्रम के स्वामी सब
मजदूर न कोई कहलाए।
डॉ साधना गुप्ता, झालवाड़
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