डॉ. बेगराज
जब हम पढ़ते थे, गुरुजन को कहते थे प्रणाम सर!
सोचते थे, कैसा लगेगा, जब हमें होगी प्रणाम सर!
बन गए अध्यापक, और शुरु हो गई प्रणाम सर!
जब घर से निकलते, रास्ते से शुरु हो जाती प्रणाम सर!
कोई हंसकर कहता, तो कोई रोकर कहता प्रणाम सर!
कोई-कोई तो लठ सा मार देता, कहकर प्रणाम सर!
फिर भी हमें अच्छा लगता, सुनकर प्रणाम सर!
जब हम जा रहे हों, अपने किन्हीं रिश्तेदारों के साथ,
तब कोई आकर हमसे कहता प्रणाम सर!
हम कनखियों से रिश्तेदार को देखते, और कहते,
देखा, कितनी इज्जत है हमारी, सब करते हमें प्रणाम सर!
शुरु-शुरु में अच्छा लगता, सुनकर प्रणाम सर!
अब हम पर बंदिशे लगाने लगा, ये प्रणाम सर!
मन कर रहा हो हमारा गोल-गप्पे खाने का,
मन मसोस कर रह जाना पड़ता, सुनकर प्रणाम सर!
हम गए हों किसी शादी या बर्थ-डे पार्टी में,
हाथ में हो हमारे खाली खाने की प्लेट,
खाने से पहले, सुनने को मिलता प्रणाम सर!
हम गए हों किसी रेस्टोरेंट में,
संवैधानिक या असंवैधानिक दोस्तों के साथ,
वहाँ भी आकर कोई कह जाता, प्रणाम सर!
दोस्तों से फटकार लगती, और सुनने को मिलता,
यहा भी पीछा नहीं छोड़ रहा है, ये प्रणाम सर!
हमें कुछ बंधनों में बांधता है, प्रणाम सर!
हमें सामाजिक भी बनाता है, प्रणाम सर!
फिर भी सुनकर अच्छा लगता है, प्रणाम सर!
प्रणाम सर! प्रणाम सर! प्रणाम सर!
Comments
Post a Comment