रश्मि अग्रवाल
शस्य श्यामला धरती,
सबका ही दुःख हरती।
इसलिए तो ...
पतझड़ मुझको कभी ना भाता,
भाता हरियाली से नाता।
खिली-अधखिली कलियाँ होतीं,
जब अपने यौवन पर...
कोई पत्तों की गोद में हँसती,
कोई पत्तों के ऊपर,
कोई जब खिल फूल हुई,
हमसे तब एक भूल हुई ।
रूप-सुगन्ध के वशीभूत हो,
हमने तोड़ा दम से ...
एक फूल खिला,
जो तेज़ हवा से लड़कर जीता-
और उपवन महकाया,
एक हार गया और गिरा ज़मीं पर,
जल्दी ही मुरझा गया।
मैं छुई-मुई सी,
खड़ी-खड़ी सब देख रही थी,
सोच रही थी, मन ही मन ...
जग को सुरभित करने वाला
फूल ....
तेरा-भी क्या जीवन?
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