जनपद बिजनौर के अन्तर्गत नजीबाबाद तहसील में नगरपालिका पंचायत जलालाबाद स्थित है। फिल्म जगत में प्रसिद्ध लेखक अख़्तरउल ईमान की भी यही जन्मभूमि है। अख़्तरउल ईमान ने अनेक सफल फिल्मों के डायलाग लिखे हैं। कहा जाता है कि जलालाबाद को मुगल शासनकाल में मूँछ पदारथ सिंह ने बसाया था। उस समय तक नजीबाबाद का कोई अस्तित्व भी नहीं था। बाद में इसी जलालाबाद को मुरादाबाद जिले का परगना भी बनाया गया। लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री अपनी पुस्तक 'क्षत्रिय जातियों को उत्थान-पतन' में लिखते हैं-
जिस समय मुगलसम्राट अकबर अपने समकालीन राजाओं और राज्यों को रौंदता-कुचलता हुआ बढ़ता चला जा रहा था। उस समय उच्चाकांक्षाओं से प्रेरित होकर जिंद राज्य में गोहाना के समीपस्थ रामरायपुर ग्राम को छोड़ कर कुछ काकराणा वंशी जाट अपने बसरू सिंह नेता के नेतृत्व में देहली की ओर चल निकले। वह बहादुरगढ़ में आ बसे। यहँा इन्होंने अपने प्रतिद्वन्दी भट्टी राजपूतों से बदला लेने के लिए शाही सेना की सेवाएँ स्वीकार कर लीं। दूल्हा भट्टी की कमान में लड़ने वाली सेनाओं के साथ युद्धग्रस्त रह कर इन्होंने अपनी राजरसिकता से अपने वंश की प्रतिष्ठा को बहुत उन्नत किया। फलतः सरदार बसरूसिंह की मुगल सेना के प्रख्यात शूरवीरों में गणना की जाने लगी। ''आईने अकबरी'' और ''जहाँगीर नामे'' में इनका उल्लेख आता है। इस वीर बसरू सिंह के चार पुत्र थे- रामसिंह, धर्म सिंह, आलम सिंह तथा पदारथ सिंह, इनमें सर्वाधिक प्रतापी राय पदारथ सिंह थे। इनका डीलडौल और मुखाकृति अत्यन्त आकर्षक थी। इनके गौर वर्ण के तेजस्वी मुखमण्डल पर काली घनी मूँछे इतनी लम्बी थीं कि उन्हें मरोड़ कर आप उन पर नांरगी रख लिया करते थे। इसीलिए इन्हें मूछ पदारथ सिंह तेग बहादुर के नाम पर भी प्रसिद्धि प्राप्त थी। ये बहादुरगढ़ से विशाल गौधन के साथ कनखल और चन्डी से बालावाली तक के उस प्रदेश पर आकर शासक बन गए। गंगा के दोनों ओर आज के बिजनौर और हरिद्वार जिलों में पड़ता है। इनकी गाय भैंसे नांगल के पास गंगा पार करके दैनिक ही सहस्त्रों की संख्या में आज के नजीबाबाद क्षेत्र में चरने आया करती थीं। गंगा पार चरने का यह स्थान ''भैंसे घट्टे की घटरी'' के नाम पर आज भी विख्यात है। वर्षाकाल में इनके विशाल गौधन का पड़ाव रामरायपुर रहता था। इन्हें अपने 'धन' की रक्षार्थ वन के शेरों, चीतों आदि हिंसक प्राणियों का प्रायः आखेट करना होता था। राय मूँछ पदारथ सिंह ने शहजादा सलीम को प्रभावित करके मित्र बना लिया और शेरों के शिकार के लिए अपने प्रदेश में आमन्त्रित किया। जहाँगीर बनने वाले शहजादे सलीम ने इधर आकर शेेरों का शिकार खेला। आखेट की सकुशल सम्पन्नता पर प्रसन्न हो कर उसकी सिफारिश पर तत्कालीन सूबेदार सम्भल से तब जिला मुरादाबाद में लगने वाले परगना जलालाबाद, किरतपुर, मंडावर के तीन सौ गांवों पर राय मूछ पदारथ सिंह का आधिपत्य स्वीकार करा दिया। 1603 ई0 में इन्हें 'राय' की उपाधि खिलअत और 'तासंग अजगंग'' गंगा से शिवालिक पहाड़ तक के प्रदेश का इन्हें ताम्रपत्र दिया गया। तब 1604 ई0 में राय मूँछ पदारथ सिंह ने अपने परिवार को भी बहादुर गढ़ से ले आना उचित समझा। इन्होंने इधर आकर गंगा पार करके नांगल में पड़ाव किया और एक कच्चा किला बनवाया। माता सोती के नाम पर इस गांव को आबाद किया। आज यह कस्बे का रूप धारण कर चुका है और इसे सोती की नांगल के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। नांगल के बाद राय मूंछ पदारथ ने एक और किला कच्चा बनवाया, उसके अन्दर विशाल हवेलियां बनवायी उसका नाम जलालुद्दीन अकबर के नाम पर जलालाबाद रखा। वहाँ से जब कीर्ति और वैभव पूर्ण हो गया तो किरतपुर हवेली बनवायी। कुछ परिवार जलालाबाद एवं कुछ किरतपुर की हवेलियांे में रहने लगे। अगले वर्ष 1605 ई. में इन्होंने किले स्वर्णपुर जो आज साहनपुर के रूप में प्रसिद्ध है- पर अधिकार किया। तहकीकए हिन्द' में अलबरूनी ने इस किले का और हर्षकालीन महाकवि बाण भट्ट ने कादम्बरी में स्वर्णपुर और किले का उल्लेख किया है।
संदर्भ
'क्षत्रिय जातियों का उत्थान-पतन', ले.- कविराज योगेन्द्रपाल शास्त्री, शक्ति आश्रम, गुरूकुल कांगड़ी, हरिद्वार
Comments
Post a Comment