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मानव संचार : अवधारणा और विकास

 


 अवधेश कुमार यादव


साभार- http://chauthisatta.blogspot.com/2014/12/blog-post.html


 


 


      मानव जीवन में जीवान्तता के लिए संचार का होना आवश्यक ही नहीं, अपितु अपरिहार्य है। पृथ्वी पर संचार का उद्भव मानव सभ्यता के साथ माना जाता है। प्रारंभिक युग का मानव अपनी भाव-भंगिमाओं, व्यहारजन्य संकेतों और प्रतीक चिन्हों के माध्यम से संचार करता था, किन्तु आधुनिक युग में सूचना प्रौद्योगिकी (प्दवितउंजपवद ज्मबीदवसवहल)  के क्षेत्र में क्रांतिकारी अनुसंधान के कारण मानव संचार बुलन्दी पर पहुंच गया है। वर्तमान में रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, टेलीफोन, मोबाइल, फैक्स, इंटरनेट, ई-मेल, वेब पोर्टल्स, टेलीप्रिन्टर, टेलेक्स, इंटरकॉम, टेलीटैक्स, टेली-कान्फ्रेंसिंग, केबल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स, समाचार पत्र, पत्रिका इत्यादि मानव संचार के अत्याधुनिक और बहुचर्चित माध्यम हैं।


     संचार : संचार शब्द का सामान्य अर्थ होता है- किसी सूचना या संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाना या सम्प्रेषित करना। शाब्दिक अर्थों में श्संचारश् अंग्रेजी भाषा के ब्वउउनदपबंजपवद शब्द का हिन्दी रूपांतरण है। जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के ब्वउउनदपे शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है ब्वउउनद, अर्थात्... संचार एक ऐसा प्रयास है जिसके माध्यम से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विचारों, भावनाओं एवं मनोवृत्तियों में सहभागी बनता है। संचार का आधार श्संवादश् और श्सम्प्रेषणश् है। विभिन्न विधाओं केे विशेषज्ञों ने संचार को परिभाषित करने का प्रयास किया है, लेकिन किसी एक परिभाषा पर सर्वसम्मत नहीं बन सकी है। फिर भी, कुछ प्रचलित परिभाषाएं निम्नलिखित हैं -


o  ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार- विचारों, जानकारियों वगैरह का विनिमय, किसी और तक पहुंचाना या  बांटना, चाहे वह लिखित, मौखिक या सांकेतिक हो, संचार है।


o  लुईस ए. एलेन के अनुसार- संचार उन सभी क्रियाओं का योग है जिनके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे के साथ समझदारी स्थापित करना चाहता है। संचार अर्थों का एक पुल है। इसमें कहने, सुनने और समझने की एक व्यवस्थित तथा नियमित प्रक्रिया शामिल है।


o  रेडफील्ड के अनुसार- संचार से आशय उस व्यापक क्षेत्र से है जिसके माध्यम से मनुष्य तथ्यों एवं अभिमतों का आदान-प्रदान करता है। टेलीफोन, तार, रेडियो अथवा इस प्रकार के अन्य तकनीकी साधन संचार नहीं है।


o  शैनन एवं वीवर के अनुसार- व्यापक अर्थ में संचार के अंतर्गत् वे सभी प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं, जिसके द्वारा एक व्यक्ति दिमागी तौर पर दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करता है। इसमें न वाचिक एवं लिखित भाषा का प्रयोग होता है, बल्कि मावन व्यवहार के अन्य माध्यम जैसे-संगीत, चित्रकला, नाटक इत्यादि सम्मिलित है।


o  क्रच एवं साथियों के अनुसार- किसी वस्तु के विषय में समान या सहभागी ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रतीकों का उपयोग ही संचार है। यद्यपि मनुष्यों में संचार का महत्वपूर्ण माध्यम भाषा ही है, फिर भी अन्य प्रतीकों का प्रयोग हो सकता है।


 


     उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति अथवा समूह को कुछ सार्थक चिह्नों, संकेतों या प्रतीकों के माध्यम से ज्ञान, सूचना, जानकारी व मनोभावों का आदान-प्रदान करना ही संचार है।  


     संचार के प्रकार : समाज में मानव कहीं संचारक के रूप में संदेश सम्प्रेषित करता है, तो कहीं प्रापक के रूप में संदेश ग्रहण करता है। इस प्रक्रिया में सम्मलित लोगों की संख्या के आधार पर मुख्यतरू चार प्रकार के होते हैं रू- 



  1. अंत: वैयक्तिक संचार :यह एक मनोवैज्ञानिक क्रिया तथा मानव का व्यक्तिगत चिंतन-मनन है। इसमें संचारक और प्रापक दोनों की भूमिका एक ही व्यक्ति को निभानी पड़ती है। अंतरू वैयक्तिक संचार मानव की भावना, स्मरण, चिंतन या उलझन के रूप में हो सकती है। कुछ विद्वान स्वप्न को भी अंतरू वैयक्तिक संचार मानते हैं। इसके अंतर्गत् मानव अपनी केंद्रीय स्नायु-तंत्र तथा बाह्य स्नायु-तंत्र का प्रयोग करता है। केंद्रीय स्नायु-तंत्र में मस्तिष्क आता है, जबकि बाह्य स्नायु-तंत्र में शरीर के अन्य अंग। इस पर मनोविज्ञान और चिकित्सा विज्ञान में पर्याप्त अध्ययन हुए हैं। जिस व्यक्ति का अंतरू वैयक्तिक संचार केंद्रित नहीं होता है, उसे मानव समाज में च्पागलज् कहा जाता है। मानव के मस्तिष्क का उसके अन्य अंगों से सीधा सम्बन्ध होता है। मस्तिष्क अन्य अंगों से न केवल संदेश ग्रहण करता है, बल्कि संदेश सम्प्रेषित भी करता है। जैसे- पैर में मच्छर के काटने का संदेश मस्तिष्क ग्रहण करता है तथा मच्छर को मारने या भगाने का संदेश हाथ को सम्प्रेषित करता है। अंतरू वैयक्तिक संचार को स्वगत संचार के नाम से भी जाना जाता है।


2.अंतर वैयक्तिक संचार : अंतर वैयक्तिक संचार से तात्पर्य दो मानवोंके बीच विचारों, भावनाओं और जानकारियों के आदान-प्रदान से है। यह आमने-सामने होता है। इसके लिए दोनों मानवों के बीच सीधा सम्पर्क का होना बेहद जरूरी है, इसलिए अंतर वैयक्तिक संचार की दो-तरफा (ज्ूव-ूंल) संचार प्रक्रिया कहते हैं। यह कहीं भी स्वर, संकेत, शब्द, ध्वनि, संगीत, चित्र, नाटक आदि के रूप में हो सकता है। इसमें फीडबैक तुुरंत और सबसे बेहतर मिलता है, क्योंकि संचारक जैसे ही किसी विषय पर अपनी बात कहना शुरू करता है, वैसे ही प्रापक से फीडबैक मिलने लगता है। अंतर वैयक्तिक संचार का उदाहरण है-मासूम बच्चा, जो बाल्यावस्था से जैसे-जैसे बाहर निकलता है, वैसे-वैसे समाज के सम्पर्कमें आता है और अंतर वैयक्तिक संचार को अपनाने लगता है। माता-पिता के बुलाने पर उसका हंसना अंतर वैयक्तिक संचार का प्रारंभिक उदाहरण है। इसके बाद वह ज्यों-ज्यों किशोरावस्था की ओर बढ़ता है, त्यों-त्यों भाषा, परम्परा, अभिवादन आदि अंतरवैयक्तिक संचार प्रक्रिया से सीखने लगता है। पास-पड़ोस के लोगों से जुडने में भी अंतर वैयक्तिक संचार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।


3.समूह संचार : यह अंतर वैयक्तिक संचार का विस्तार है, जिसमें मानव सम्बन्धों की जटिलता होती है। मानव अपने जीवन काल में किसी-न-किसी समूह का सदस्य अवश्य होता है। अपनी आवश्यकतओं की पूर्ति के लिए नये समूहों का निर्माण भी करता है। समूहों से पृथक होकर मानव अलग-थलग पड़ जाता है। समूह में जहां मानव के व्यक्तित्व का विकास होता है, वहीं सामाजिक प्रतिष्ठा भी बनती है। समाजशास्त्री चाल्र्स एच. कूले के अनुसार-समाज में दो प्रकार के समूह होते हैं। पहला- प्राथमिक समूह { जिसके सदस्यों के बीच आत्मीयता, निकटता एवं टिकाऊ सम्बन्ध होते हैं। जैसे- परिवार, मित्र मंडली व सामाजिक संस्था इत्यादि } और दूसरा- द्वितीयक समूह  { जिसका निर्माण संयोग या परिस्थितिवश अथवा स्थान विशेष के कारण कुछ समय के लिए होता है। जैसे- ट्रेन व बस के यात्री, क्रिकेट मैच के दर्शक, जो आपस में किसी विषय पर विचार-विमर्श करते हैं} सामाजिक कार्य व्यवहार के अनुसार समूह को हित समूह और दबाव समूह में बांटा गया है। जब कोई समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य करता है, तो उसे हित समूह कहते हैं, लेकिन जब वह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दूसरे समूहों या प्रशासन पर दबाव डालते लगता है, तो स्वतरू ही दबाव समूह में परिवर्तित हो जाता है। मानव समूह बनाकर विचार-विमर्श, संगोष्ठी, भाषण, सभा के माध्यम से विचारों, जानकारियों व अनुभवाओं का आदान-प्रदान करता है, तो उस प्रक्रिया को समूह संचार कहते हैं। इसमें फीडबैक तुरंत मिलता है, लेकिन अंतर-वैयक्तिक संचार की तरह नहीं। फिर भी, यह प्रभावी संचार है, क्योंकि इसमें व्यक्तित्व खुलकर सामने आता है तथा समूह के सदस्यों को अपनी बात कहने का पर्याप्त अवसर मिलता है। समूह संचार कई सामाजिक परिवेशों में पाया जाता है। जैसे- कक्षा, रंगमंच, कमेटी हॉल, बैठक इत्यादि। 


4.जनसंचार : आधुनिक युग में च्जनसंचारज् काफी प्रचलित शब्द है। इसका निर्माण दो शब्दों  श्जनश् और श्संचारश् के योग से हुआ है। च्जनज् का अर्थ 'जनता अर्थात भीड़' होता है। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, जन का अर्थ पूर्ण रूप से व्यक्तिवादिता का अंत है। इस प्रकार, समूह संचार का वृहद रूप है- जनसंचार। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग १९वीं सदी के तीसरे दशक के अंतिम दौर में संदेश सम्प्रेषणकेलिएकियागया।संचार क्रांति के क्षेत्र में अनुसंधान के कारण जैसे-जैसे समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, केबल, इंटरनेट, वेब पोर्टल्स इत्यादि का प्रयोग बढ़ता गया, वैसे-वैसे जनसंचार के क्षेत्र का विस्तार होता गया। इसमें फीडबैक देर से तथा बेहद कमजोर मिला है। कई बार नहीं भी मिलता है। आमतौर पर जनसंचार और जनमाध्यम को एक ही समझा जाता है, किन्तु दोनों अलग-अलग हैं। जनसंचार एक प्रक्रिया है, जबकि जनमाध्यम इसका साधन। जनसंचार माध्यमों के विकास के शुरूआती दौर में जनमाध्यम मानव को सूचना अवश्य देते थे, परंतु उसमें मानव की सहभागिता नहीं होती थी। इस समस्या को संचार विशेषज्ञ जल्दी समझ गये और समाधान के लिए लगातार प्रयासरत रहे। इंटरनेट के आविष्कार के बाद लोगों की सूचना के प्रति भागीदारी बढ़ी है। मनचाहा सूचना प्राप्त करना और दूसरों तक तीब्र गति से सम्प्रेषितकरना संभव हो सका। संचार विशेषज्ञों ने जनसंचार की निम्न प्रकार से परिभाषित किया है - 



  •       लेक्सीकॉन यूनिवर्सल इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार- कोई भी संचार, जो लोगों के महत्वपूर्ण रूप से व्यापक समूह तक पहुंचता हो, जनसंचार है।

  •     कार्नर के अनुसार- जनसंचार संदेशों  के बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा वृहद स्तर पर विषमवर्गीय जनसमूहों में द्रुतगामी वितरण करने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में जिन उपकरणों अथवा तकनीक का उपयोग किया जाता है उन्हें जनसंचार माध्यम कहते हैं। 

  •     कुप्पूस्वामी के अनुसार- जनसंचार तकनीकी आधार पर विशाल अथवा व्यापक रूप से लोगों तक सूचना के संग्रह एवं प्रेषण पर आधारित प्रक्रिया है। आधुनिक समाज में जनसंचार का कार्य सूचना प्रेषण, विश्लेषण, ज्ञान एवं मूल्यों का प्रसार तथा मनोरंजन करना है। 

  •     जोसेफ डिविटो के अनुसार- जनसंचार बहुत से व्यक्तियों में एक मशीन के माध्यम से सूचनाओं, विचारों और दृष्टिकोणों को रूपांतरित करने की प्रक्रिया है।

  •     जॉर्ज ए.मिलर के अनुसार- जनसंचार का अर्थ सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाना है।


      उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि जनसंचार यंत्र संचालित है, जिसमें संदेश को तीब्र गति से भेजने की क्षमता होती है। जनसंचार माध्यमों में टेलीविजन, रेडियो, समाचार-पत्र, पत्रिका, फिल्म, वीडियो, सीडी, इंटरनेट, वेब पोर्टल्स इत्यादि आते हैं, जो संदेश को प्रसारित एवं प्रकाशित करते हैं। 


     मानव संचार का विकास


    विशेषज्ञों का मानना है कि सृष्टि में संचार उतना ही पुराना है, जितना की मानव सभ्यता। आदम युग में मानव के पास आवाज थी, लेकिन शब्द नहीं थे। तब वह अपने हाव-भाव और शारीरिक संकेतों के माध्यम से संचार करता था। तात्कालिक मानव को भी आज के मानव की तरह भूख लगती थी, लेकिन उसके पास भोजन के लिए आज की तरह अनाज नहीं थे। वह वृक्षों के फलों और जानवरों के कच्चे मांसों पर पूर्णतया आश्रित था, जिसकी उपलब्धता के बारे में जानने के लिए आपस में शारीरिक संकेतों के माध्यम से संचार (वार्तालॉप) करता था। पाषाण युग का मानव कच्चे मांस की उपलब्धता वाले इलाकों में पत्थरों पर जानवरों का प्रतीकात्मक चित्र बनाने लगा। कालांतर में मानव ने प्रतीक चित्रों के साथ अपनी आवाज को जोडना प्रारंभ किया, परिणामतरू अक्षर का आविष्कार हुआ। अक्षरों के समूह को शब्द और शब्दों के समूह को वाक्य कहा गया, जो वर्तमाान युग में भी संचार के साधन के रूप में प्रचलित है। इस तरह के संचार का सटीक उदाहरण है- नवजात शिशु... जो शब्दों से अनभिज्ञ होने के कारण हंसकर, रोकर, चीखकर तथा हाथ-पैर चलाकर अपनी भावनाओं को सम्प्रेषित करता है। इसके बाद जैसे-जैसे बड़ा होता है, वैसे-वैसे शब्दों को सीखने लगता है। इसके बाद क्रमशरू तोतली बोली, टूटी-फूटी भाषा और फिर स्पष्ट शब्दों में वार्तालॉप करने लगता है। 


     प्राचीन काल में मानव के पास शब्द तो थे, लेकिन वह पढना-लिखना नहीं जानता था। ऐसी स्थिति में अपने गुरूओं और पूर्वजों के मुख से निकले संदेशों को किवदंतियों के सहारे आने वाली पीढ़ी तक सम्प्रेषित करने का कार्य होता था। कालांतर में भोजपत्रों पर संदेश लिखने और दूसरों तक पहुंचाने की प्रथा प्रारंभ हुई, जो भारत में काफी कारगर साबित हुई। इसी की बदौलत वेद-पुराण व आदि ग्रंथ लोगों तक पहुंचे। गुप्तकाल में  शिलालेखों का निर्माण कराया गया, जिन पर धार्मिक व राजनीतिक सूचनाएं होती थी। ऐसे अनेक स्मारक आज भी मौजूद हैं। 


     जर्मनी के जॉन गुटेनवर्ग ने सन् 1445 में टाइपों का आविष्कार किया, जिससे संचार के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। टाइपों की मदद से विचारों या सूचनाओं को मुद्रित कर अधिक से अधिक लोगों तक प्रसारित करने की सुविधा मिली। सन् 1550 में भारत का पहला प्रेस गोवा में पुर्तगालियों ने इसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए लगाया। जेम्स आगस्टक हिकी ने सन् 1780 में भारत का पहला समाचार-पत्र च्बंगाल गजटश् प्रकाशित किया। 19वीं शताब्दी में टेलीफोन और टेलीग्राम के आविष्कार ने संचार की नई संभावनाओं को जन्म दिया। इसी दौर में रेडियो और टेलीविजन के रूप में मानव को संचार का जबरदस्त साधन मिला। बीसवीं शताब्दी में इलेक्ट्रानिक मीडिया का अत्यधिक विकास हुआ। 21वीं शताब्दी में इंटरनेट ने मानव संचार को सहज, सरल और व्यापक बना दिया।


 


     निष्कर्ष रू मानव समाज में संचार के विकास का प्राचीन काल में जो सिलसिला प्रारंभ हुआ, वह वर्तमान में भी चल रहा और भविष्य में भी चलता रहेगा। इसका अगला पड़ाव क्या होगा, कोई नहीं जानता है। प्राचीन काल में संचार के कुछ ऐसे तरीकों का सूत्रपात किया गया था, जिसकी प्रासंगिक आज भी बरकरार है तथा आगे भी रहेंगी। वह है- यातायात संकेत, जिसे सडक के किनारे देखा जा सकता है, जिन पर दाएं-बाएं मुडने, धीरे चलने, स्प्रीड ब्रेकर या तीब्र मोड़ होने या रूकने के संकेत होते हैं। इन संकेतों को चलती गाड़ी से देखकर समझना बेहद आसान है, जबकि पढकर समझना बेहद मुश्किल है। इन संकेतों के माध्यम से संदेशों का सम्प्रेषण आज भी वैसे ही होता है, जैसे शुरूआती दिनों होता था।मानव जीवन में जीवान्तता के लिए संचार का होना आवश्यक ही नहीं, अपितु अपरिहार्य है। पृथ्वी पर संचार का उद्भव मानव सभ्यता के साथ माना जाता है। प्रारंभिक युग का मानव अपनी भाव-भंगिमाओं, व्यहारजन्य संकेतों और प्रतीक चिन्हों के माध्यम से संचार करता था, किन्तु आधुनिक युग में सूचना प्रौद्योगिकी (प्दवितउंजपवद ज्मबीदवसवहल)  के क्षेत्र में क्रांतिकारी अनुसंधान के कारण मानव संचार बुलन्दी पर पहुंच गया है। वर्तमान में रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, टेलीफोन, मोबाइल, फैक्स, इंटरनेट, ई-मेल, वेब पोर्टल्स, टेलीप्रिन्टर, टेलेक्स, इंटरकॉम, टेलीटैक्स, टेली-कान्फ्रेंसिंग, केबल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स, समाचार पत्र, पत्रिका इत्यादि मानव संचार के अत्याधुनिक और बहुचर्चित माध्यम हैं। मानव संचार को जानने ने पूर्व मानव और संचार को अलग-अलग समझना अनिवार्य है। 


 


( 'प्रतियोगिता दर्पण' जनवरी- 2015 अंक में पेज 101-102 पर प्रकाशित) 


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